अनदेखे ख़्वाबों की दो जोड़ी नन्हीआँखें, जिन्होंने स्वप्न देखने की आयु से पूर्व दु:स्वप्न देख आँखें मूँद लीं। जो क़दम अभी चलना ही सीखे थे, लड़खड़ा कर थम गए। बचपन के घुटने पर लगी हर खरोंच, व्यस्कों के गाल पर एक तमाचा है। धर्म के आडंबरों से अछूता बाल मन जो मंदिरों और मस्जिदों को अपनी आत्मा में रखता था, धर्म की दरारों पर अपना नन्हा शव छोड़ निकल पड़ा। कहीं दूर,दग्ध शरीर के ताप से दूर, जब यह अकलुषित हृदय पहुँचा तो एक और निष्पाप दूधिया आत्मा दिखी, जिसकी पलकों के कोरों में उसकी आँखों के जैसे ही अविश्वास से सहमा हुआ अश्रु रूका था। एक दूसरे के गले लग कर दोनों बाल मन दरिया के टूटे बाँध की तरह बह निकले। घाव बाँटे, एक दूसरे के हृदय में चुभी धरती की किरचें निकाली और न देखे हुए स्वप्नों का श्राद्ध रचा। उसने थमती हिचकियों में अपना नाम बताया - ‘आसिफा’। और दुख के साथी की ठोड़ी थाम कर कहा - ‘मत रो, न्याय होगा।’ धरती की तरफ़ नन्ही गुलाबी उँगली दिखा कर कहा- “देख, भले लोग लड़ रहे है मेरे लिए, न्याय होगा। तेरे लिये भी लड़ रहे होंगे। तू मत रो” फिर बोली, “मैं पश्चिम से हूँ, तू पूरब से, पर हैं
Comments