भरत की सिंह-गर्जना
सुलक्षणा सुदर्शना।
शिव की योग-दृष्टि तुम
प्रथम रचित सृष्टि तुम।
हो भूमि तुम अशोक की
सुलक्षणा सुदर्शना।
शिव की योग-दृष्टि तुम
प्रथम रचित सृष्टि तुम।
हो भूमि तुम अशोक की
हो वत्सला त्रिलोक की।
हो शून्य तुम, अनंत तुम
ग्रीष्म तुम, वसन्त तुम।
सागर का जो विस्तार है
सो राष्ट्र का आधार है।
उत्तर में हिम प्राचीर है
निर्भय अविचल वीर है।
हो शून्य तुम, अनंत तुम
ग्रीष्म तुम, वसन्त तुम।
सागर का जो विस्तार है
सो राष्ट्र का आधार है।
उत्तर में हिम प्राचीर है
निर्भय अविचल वीर है।
विंध्य की सुप्त -श्रंखला
ज्यों सुंदरी की मेखला।
पश्चिम का प्रखर प्रताप हो
पूरब से उठी आलाप हो
आज़ाद का अभिमान तुम
बिस्मिल की अक्खड़ शान तुम।
पूरब से उठी आलाप हो
आज़ाद का अभिमान तुम
बिस्मिल की अक्खड़ शान तुम।
सुभाष का बलिदान तुम,
एक अनवरत अभियान तुम।
माता तुम्ही में प्राण हैं
श्रद्धा हो तुम, विश्वास तुम।
निर्भीक तुमको सौंप दूँ
मांगो जो अंतिम श्वास तुम।
जो शीश भी तुम मांग लो
संशय ना लूँ मन में ज़रा।
हे मातृवत वसुंधरा।
हे सप्त-सिंधु की धरा।।
माता तुम्ही में प्राण हैं
श्रद्धा हो तुम, विश्वास तुम।
निर्भीक तुमको सौंप दूँ
मांगो जो अंतिम श्वास तुम।
जो शीश भी तुम मांग लो
संशय ना लूँ मन में ज़रा।
हे मातृवत वसुंधरा।
हे सप्त-सिंधु की धरा।।
Comments