धर्म संकट में है, धर्म ध्वजा धूलि-धूसरित हवा में कटी छिपकली की पूँछ की तरह फड़फड़ा रही है। लेनदारों के भय से,चेहरे पर रूमाल बाँध कर पिछवाड़े के रास्ते से घर से पलायन करने वाले भी राह चलतों को पकड़ कर दरयाफ़्त करते हैं - भई, देश का क्या होगा। उदारीकरण के पथप्रदर्शकों ने उधार दिया, और जम कर दिया। बाज़ार में ऐसी तरलता लाई गई कि आज भी राष्ट्र कल्लू हलवाई की तोंद की तरह थिरक रहा है। एक चकाचौंध भरी तरक़्क़ी यूँ चमकी सारे देश ने करूणानिधि वाले चश्मे चढ़ा लिए। उदारिकरण के अँधे को सब हरा ही हरा दीखता था। जैसे मुग़ल सुल्तान गले से मोतियों की माला बेहतरीन रक्कासा की ओर ऊछालते थे, लोन उछाले गए और तत्परता से पकड़े गए। पिछली सरकार से यह स्नेह भरी भेंट प्राप्त करने वाले लोग उत्पादकता में कम विलासिता में अधिक विश्वास रखते थे। अमीर के घर के कैलेंडर पर अल्प-वस्त्र धारिणी के वस्त्र और ग़रीब के घर के गैस सिलेंडर कम होते गए और राष्ट्र उधार की उन्नति की आनंद लहर में हिचकोले लेता गया। समय की मार देखें कि सरकार बदली और जो भारतीय संस्कृति की बात करते थे उन्होंने ही भारतीय संस्कृति की विरासत को व
I am a Worshiper of Words. I ponder, I think, I write, therefore, I exist. A Blog on Literature, Philosophy and Parenting