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Photo Courtesy: FINDLAY KEMBER/AFP/Getty Images |
राहुल गाँधी की आधुनिक महाभारत
(Below is Rahul Gandhi's Interpretation of Mahabharat)
महाभारत युद्ध के काल मे ‘यंग इंडिया’ के अध्यक्ष मोतीलाल वोरा अँकल सच मे युवा भारतीय थे और धृतराष्ट्र जी को युद्ध का वृतांत बताने वाले संजय के टी वी का एँटीना घुमा कर वही एडजस्ट कर रहे थे।
धृतू अँकल को कुछ नहीं दिखता था, बिल्कुल मन्नू अँकल जैसे, और उनके जीवन का उद्देश्य भी युवराज के मैच्योर होने तक सत्ता की रक्षा करना था। समस्या वहाँ भी यही थी कि लाख प्रयास करने पर भी युवराज मैच्योर ना हो पा रहे थे, और माता गाँधारी युवराज को राष्ट्र पर ठेले पड़ी थीं।
माता गाँधारी ने गाँधार से भारत आने के बाद लगभग दशक तक भारत मे बसने के बारे मे विचार किया। गहन विचार के उपरांत उन्होंने भूरे रंग के भारतियों के उद्धार का निर्णय लिया। मूढ़ मगज भारतीयों ने उनके उनके इक राष्ट्र का उद्धार करने के भार का निरादर कर के उन्हे सत्ता को संभालने नहीं दिया। तब जाकर राजमाता को भारतियों को अति- प्रिय त्याग का लडडू खिलाया और धृतराष्ट्र को उनके अंधेपन पे भरोसा कर के सम्राट नियुक्त किया, और वास्तविक सत्ता के निर्वहन के लिए शकुनि जी के नेतृत्व में राष्ट्रीय सलाहकार मण्डल का गठन किया।
समय के साथ युवराज सुयोधन, अपने पैतृक अधिकार को सुनिश्चित जान कर अपनी क्यूटता में आत्मचिन्तन के माध्यम से वृद्धि करने में जुट गए। जहाँ महाराज धृतराष्ट्र अपनी नेत्रहीन की भूमिका में सिंहासन पर सेटल हो गए, वहीं गुरू द्रोण गृह मंत्रालय और वित्त -व्यापार सँभालते, राजमाता के निर्देशानुसार दस टका प्रति डील पर राज्य चलाने मे व्यस्त हो गए।
द्रोण किसी भी विरोधी स्वर को अर्ध रात्रि मे डंडा-वंदन के द्वारा कुशलता से शाँत करने मे कुशल थे, चाहे वो महल में हो या रामलीला मैदान में। उनका पुत्र अश्वत्थामा कुबेर का यान चुरा कर हाई फ्लायर बना, और अकसर यवन देशों में हिमपात का आनंद लेते हुए अपनी तस्वीर नगर पट्टिका पर टाँग कर जनता का जी जलाया करता था।
हाई फ्लायर अश्वत्थामा अपने चित्रों पर किसी टिप्पणी को पसंद नही करता था, और टिप्पणी करने वाले को कारागृह मे डलवा देते थे। महाबली अश्वत्थामा को सुपरमैन पोज मे तस्वीर खिँचाने का ख़ासा शौक़ था परंतु बहुत इच्छा होने पर भी लोक मर्यादा के अनुसार वह अंतर्वस्त्र बाहर नहीं पहनते थे। इस विषय पे महृषि विदुर ने 66 A का नियम बना कर बाल -द्रोण के बहुत सहायक रहे।
युधिष्ठिर और पाँडव, जो कि ब्राह्मणवादी, लम्पेन फ़्रिंज तत्व थे, उन्होंने ख़ानदानी कौरवों से पाँच गाँव माँगे। बताया जाता है कि पाँडवो ने शहर की बजाय गाँव इसलिए माँगे क्योंकि उन्हें रूरल विद्युतीकरण का अभूतपूर्व चाव था।
नकुल और सहदेव संघी गोरक्षक थे। वे एमनेस्टी या पेटा जैसे किसी प्रतिष्ठित संस्था से जुड़ कर अच्छा कैरियर बना सकते थे किन्तु अंग्रेज़ी का ज्ञान ना होने के कारण फ़्रिंज हो कर रह गए। सो डाउन मार्केट !
आगे की कथा हमें गुटखे वाले अंकिल के पुत्र, हमारे सायकिल सखा ने बताई। बहरहाल युधिष्ठिर अपना पाँच गाँव प्राप्त कर के उनमें बिजली-उजली दे के राज चलाने लगे। सुयोधनवा गाँधार वग़ैरह सब जगह कृपाचार्य के द्वारा चिट्ठी लिखा के जुधिस्ठिर का हुक्का पानी बंद करवा दिहिस।
फासिस्ट जुधिष्ठरवा अपन गाँव मे जबरजस्त बिकास ठेला और सब को बोला कि जे देखो इंद्रप्रस्थ माडल। उसमें भी सबसे बड़ा गड़बड़ ये किया कि कृष्ण को साथ लेके जादौ भोट में सेंध मार लिहिस। किन्तु भले ही जैसे अम्बेडकर को मोदी जी ने अपनी ओर कर लिया, दंगाई सेना हमारे साथ है, वैसे ही सुयोधन ने कृष्ण की सेना को अपनी और किया।
ख़ैर, आगे जो है युद्ध हुआ। कर्ण के प्रसंग को ऊना की भाँति आगे लाकर दलित नेरेटिव खींचा गया। और भाई के भाई से संघर्ष की मस्त पृष्ठभूमि खिंची। संजय भाई टैक्स दबा के चुराए, पर द्रोण जी ने उन्हें दस टका पर डील के अंतर्गत एमनेस्टी दे कर , प्रेस फ़्रीडम के नाम पर युद्ध के कवरेज का एक्सक्लूसिव राईट दिया।
इसके आगे की कथा, गुहा जी के अनुसार इतिहास से संघी छेड़ छाड का नतीजा है। सूत्र बताते हैं कि वास्तव मे युद्ध मे पाँडवो की हार हुई। धर्म की हार की वजह से ही आज शैम्पू स्वामी निद्रा में “मैं हिंदू क्यूँ हूँ” कह कह कर विलाप करते हैं। उनकी इसी दुःख की वजह से चिर-चिंतित मुद्रा उन्हें बुद्धिजीवी और महिलाओं में आकर्षक बनाती है।
युद्ध के लिए सुयोधन ने विदेशों में जा के भाषण दिए और गाँधार से इस्लामिक सेना बुलाई गई। पाँडवों के ठाकुर-यादव समीकरण के तोड़ में राजमाता गाँधारी ने दलित-मुस्लिम समीकरण कर्ण के साथ ख़िलजी को बिठा कर सेट किया। यही समीकरण आज भी भारत वर्ष में हमारे काम आता है।
मुझे लगता है कि मॉमा भारत पर राज करने के इस पौराणिक फ़ार्मूले की खोज मे लाला रामदेव से और उपयोग में माता गाँधारी से कम नहीं है। फ़ार्मुला आज भी सौ टका कामयाब है ।
युद्ध के अंत में कारण भी कुरुवंश का शासन शाट वर्षों के लिए स्थापित होता है, और भ्रष्ट्राचार्य के राष्ट्रीय स्वभाव की नींव पड़ी।
अंत मे दलित कर्ण को बोध होता है कि वह अपने परिवार से ही लड़ रहा था। तब तक परंपरा और इतिहास का कवच कुँडल खो कर कर्ण परलोक सिधार जाता है और भारत में प्रथम इस्लामिक सल्तनत नींव पड़ती है।
यही महाभारत का सत्य था जो सिर्फ कांग्रेस को पता है। संघी इतिहासकारों ने इसी सत्य को छुपाने के लिए १००० वर्ष पूर्व हुए महाभारत को ६०००-७००० साल पहले का बताया। ये संघी झूठ है। हम आज भी कर्ण और बाक़ी पांडवों के बीच भेद बना कर, गांधार की भाँति विदेशी समर्थन पा कर, एक युद्ध की स्थिति बना के सत्ता में आ सकते हैं।
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