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Showing posts from April, 2022

शासन, न्याय, दंड और न्यायपालिका - बुलडोज़र न्याय

  दण्ड : शास्ति प्रजा : सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति। दण्ड : सुप्तेषु जागर्ति दंडम धर्म विदुर्बुधा : ।। - मनु स्मृति   ‘ वास्तव में दण्ड ही प्रजा पर शासन करता है , दण्ड ही प्रजा की रक्षा करता है , जब प्रजा सोती है , दण्ड ही जागृत रहता है , इसी कारण विद्वान दण्ड को ही राजा का प्रमुख कार्य मानते हैं। ’  मनु स्मृति का यह श्लोक मानव सभ्यता के प्रारम्भिक काल में लिखा गया और आज भी उतना ही सामयिक है जितना शताब्दियों पूर्व था। जिस समाज में आम नागरिक अपनी सुरक्षा के प्रति निश्चिंत होता है और स्वयं शस्त्र नहीं धारण करता है , वह समाज सशक्त शासन के लिए जाना जाता है , जहाँ सत्ता प्रजा के सबसे निर्बल व्यक्ति के अस्तित्व एवं अधिकार के लिए कर्मशील हो। समाज में शासन और शासित का विभाजन इसी मूल सहमति के आधार पर निर्मित होता है और पश्चिम से आयातित सभ्यताओं को छोड़ दें तो एक सुसंस्कृत समाज में प्रत्येक आम नागरिक सैनिक नहीं होता है।   वर्तमान में एक बुलडोज़र न्याय