सत्यम , दानम , क्षमा शीलमानृशंस्य तपो घृणा। दृश्यंते यत्र नागेंद्र स ब्राह्मण इति स्मृतः।। ( हे सर्पराज , जिसमें सत्य , दानशीलता , क्षमा , क्रूरतारहित भाव , तप एवं संवरण , एवं संवेदना हो , वह मनुष्य को ही ब्राह्मण मानना चाहिए। ) शुद्रे तु यद् भवेल्लक्षम द्विजे तच्च न विद्दयते। न वै शूद्रों भवेच्छुद्रो ब्रह्मणो न च ब्राह्मण : ।। ( यदि शूद्र में यह गुण हैं ( सत्य , दान , अक्रोध , अहिंसा , तप , संवरण एवं संवेदना ) और ब्राह्मण में यह गुण परिलक्षित ना हों तो वह शूद्र शूद्र नहीं , ब्राह्मण है ; और वह ब्राह्मण ब्राह्मण नहीं है। ) - युधिष्ठिर - नहुष संवाद , अजगर कांड , महाभारत , वन पर्व वर्तमान परिपेक्ष्य में जिसे जाति कहा जाता है , वह वर्ण व्यवस्था का विकृत रूप है। सनातन धर्म का वर्ण जहाँ समाज को व्यवसाय एवं क्षमता के अनुरूप व्यवस्थित करने का प्रयास था और कर्म पर आधारित था , जाति उसी व्यवस्था का विघटित रूप बन कर जन्मगत व्यवस्था बन गई। जाति या कास्ट पुर्तगाल
I am a Worshiper of Words. I ponder, I think, I write, therefore, I exist. A Blog on Literature, Philosophy and Parenting